कुलदेवता - देवी का पूजन
(पितृ-दोष, कालसर्प दोष शांति एंव सुख-समृद्धि प्राप्त करने का वैज्ञनिक आधार)
मनुष्य एक समाज-प्रिय प्राणी है। वह जब अपने-अपने परिवार के मंगल कल्याण के लिए साधना, ध्यान, प्रार्थना, पूजा, उपासना के क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उस वक्त उसकी प्रार्थना उसके परिवार के कुल देवता/देवी की ओर से स्वीकार की जाती है। वास्तविक रूप से जिस परिवार को कुल देवता/देवी का आर्शीर्वाद, कृपा प्राप्त होती है उन परिवारों का मंगल कल्याण हो जाता है और उन्हें बिना विघ्न बाधा के सुख, समृद्धि, शांति आदि प्राप्त होती है और आने वाली पीढ़ी भी बिना विघ्न बाधाओं के सफलताओं की ओर अग्रसर होने लगती है। यह लेखक के स्वयं का एवं लाखों भक्तों का अनुभूत प्रयोग है। आप स्वयं खुद ही विचार मंथन करें कि, इस संसार में ऐसे कौन से धर्म है जो सप्ताह में एक दिन निश्चित समय में अपने एक ईश्वर की प्रार्थना के बल पर हजारों वर्षों से सुखी, समृद्धशाली होकर विश्व में राज्य कर रहे हैं। वर्तमान में भी वे हमसे लगभग 200 वर्ष आगे हैं। अतः हम सनातन हिन्दुओं को परम पिता परमेश्वर (ॐ) की अंधविश्वास, पाखंड, आडम्बर रहित सावभौम प्रार्थना के क्रियात्मक ज्ञान की अत्यन्त आवश्यकता है।

कुल देवता/देवी
|| ॐ कुलदेवतायै नम: ||
|| ॐ कुलदैव्यै नम: ||
कुल देवता/देवी के संबंध में व्याप्त विसंगतियों का निदान
सामान्यतः प्रत्येक सनातन हिन्दू परिवार में कुल देवता/देवी के नामों के संबंधो में व्यार विसंगतियों एव विवादों का सबसे पहिले निदान अवश्यक है। जैसे कोई कहता है कि हमारी कुल देवी “खजूरी वाली माताजी” है, कोई कहता है कि हमारी कुल देवी “ईंट वाली माताजी ” हैं। कोई कहता है कि हमारी कुल देवी “नैनोद वाली देवी” हैं। कोई कहता है कि “पावगढ़ वाली देवी” है। कोई कहता है कि, “बगावद वाली देवी” हैं। कोई कहता है कि “मैडता वाली माता” है। कोई कहता है कि “जीन वाली देवी” हैं। कोई कहता है कि “सती वाली माता” है। इसी प्रकार कुल देवता के संबंध में कोई कहता है कि हमारे कुल देवता “खेड़े वाले देवता” है। कोई कहता है कि “काले देवता” हैं। कोई कहता है कि “हिसार वाले देवता” हैं। कोई कहता है कि “गुड़गाँव वाले देवता” है। कोई कहता है कि “खप्पर वाले देवता” है।
किन्तु वास्तव में खजूरी वाली देवी, ईंट वाली देवी, नैनौद वाली देवी, पावागढ़ वाली देवी, बगावद वाली देवी, जीन वाली देवी, रानी सती देवी, मैडता वाली देवी तथा खेड़े वाले देवता, काले देवता, हिसार वाले देवता, गुडगाँव वाले देवता आदि के नाम से वेदों, शास्त्रों में कोई देवता या देवी नहीं है। = यह सिद्ध है कि, जहाँ परिवार के पूर्वज निवास करते होंगे उस गाँव के नाम या जहाँ देवी/देवता का मंदिर स्थित रहा होगा उसके नाम से देवी/देवता का अपभ्रंश नाम प्रचलित हो गया और हम उसी नाम से उनको पूजते चले आ रेह हैं । अब स्वयं सोचिए कि इन अपभ्रंश (जड़) नामों की प्रार्थना करने से हमें कैसे धनात्मक सुक्ष्म ऊर्जा प्राप्त होगी। हमारी कुल देवी/देवता के प्रति की गई प्रार्थना हमेश निष्फल होती रहती है। वास्तव में कुल देवी/देवता वही रही होगी जिसका शास्त्रों में उल्लेख है। संस्था द्वारा शास्त्रोक्त कुल देवता/देवी का ज्ञान कराया जाता है|
इस तथ्य की प्रमाणिकता का आधार
मुझे इस तथ्य का प्रमणिक / वैज्ञानिक आधार “श्री माँ बगलामुखी मंदिर, नलखेड़ा जिला शाजापुर (म.प्र.) से प्राप्त हुआ।” नलखेड़ा में मेरा नायब तहसीलदार के पद पर पदस्थीकरण वर्ष 1989 में हुआ। वहाँ माँ ने स्वप्न दिया। तब इस मंदिर को “बगावद देवी” के नाम से पुकारा जाता था। मैं जब प्रथम बार मंदिर के दर्शन हेतु गया तो मैंने पुजारी जी से कहा कि, “यह तो माँ बगलामुखी” की मूर्ति है। तब उन्होंने कहा कि, यह “माँ बगलामुखी” की ही मूर्ति है। पूजारी ने बताया कि, इसे बगावद देवी इसलिए कहते हैं कि, जिस ग्राम में मंदिर बना है उसका नाम बगावद है। माँ की प्रेरणा और कृपा से मंदिर का नामकरण सर्वसिद्ध माँ बगलामुखी किया और इसके बाद मैंने माँ की कृपा और “माँ बगलामुखी” के मंत्र से भक्तों को प्रार्थना करने के लिए प्रेरित किया। इसके प्रभाव से भक्तों ने सूक्ष्म धनात्मक ऊर्जा प्राप्त की है और कर रहे है तथा भारतवर्ष के कोने-कोने से 35 वर्षों से लाखों भक्तगण पधारकर अपनी- अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण कर रहे हैं और नलखेड़ा हजारों परिवार को रोजगार उपलब्ध हो रहा है एवं सभी सुख समृद्धि निरंतर अग्रसर हो रहे है।