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कर्मयोग की महिमा
भगवान कर्मफल , प्रारब्धानुसार प्रदान करते हैं। भाव से भोगा गया कर्मफल प्रारब्ध क्षय का कारण होता हैं , किन्तु कर्तव्य पालन मनुष्य , भक्त , साधक के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। कर्मफल की अनुकूलता -प्रतिकूलता का भाव त्याग कर, ईश्वर की सेवा समझते हुए चीत को सदैव प्रसन्न , संतुष्ट बनाए रख कर कर्म करते हुए भी अकर्मी रह कर कर्म करना ही कर्म योग हैं।

महत्वपूर्ण बिंदु
कर्म का दिव्य न्याय:
- भगवान कर्म और प्रारब्ध के अनुसार फल प्रदान करते हैं।
प्रारब्ध का क्षय:
- भक्ति भाव से भोगे गए कर्मफल प्रारब्ध को समाप्त करते हैं।
कर्तव्य पालन का महत्व:
- मनुष्य, भक्त और साधक के लिए कर्तव्य निभाना अत्यंत आवश्यक है।
परिणाम से विरक्ति:
- अनुकूल या प्रतिकूल परिणामों के प्रति आसक्ति त्यागनी चाहिए।
समर्पण भाव से सेवा:
- प्रत्येक कार्य को ईश्वर की सेवा समझकर करना चाहिए।
आंतरिक शांति और संतोष:
- मन को सदैव प्रसन्न और संतुष्ट बनाए रखना चाहिए।
सच्चा कर्मयोग:
- बिना फल की इच्छा और अहंकार के कर्म करना तथा अकर्मी भाव बनाए रखना ही कर्मयोग है।