Decay of Lust: Path to Self-Purification Through Devotion and Sadhana

वासना का क्षय: भक्ति और साधना से आत्मशुद्धि का मार्ग

मनुष्य को इस तथ्यात्मक बात और शाश्वत सत्य को समझ लेना चाहिए कि जब तक मन और चित्त में विकार और वासना के संस्कार, जो प्रारब्ध निर्माण के कारक तत्व हैं, पूर्ण रूप से निर्मूल नहीं हो जाते, तब तक वासना भी बनी रहती है।

वासना और विकारों का समूल नाश केवल ईश्वरीय आंतरिक चेतना, भक्ति, प्रार्थना, जप-तप, ध्यान, साधना, और शक्ति की चैतन्य क्रियाओं के माध्यम से ही संभव है। उपरोक्त अभ्यास मन और चित्त में संचित वासनाओं के संस्कारों को उभारकर, भक्ति-शक्ति के समक्ष स्वाभाविक क्रियाओं के रूप में प्रस्तुत कर देता है, जिससे वासना क्षय का क्रम अत्यंत शीघ्र हो जाता है।

समर्पण और अभ्यास के मार्गों का सम्मिश्रण करने से भक्ति की उन्नति की गति अत्यंत तीव्र हो जाती है।

महत्वपूर्ण बिंदु

वासना और विकारों का अस्तित्व:

  • जब तक मन और चित्त में वासना और विकारों के संस्कार बने रहते हैं, तब तक वासना समाप्त नहीं होती।
  • ये संस्कार प्रारब्ध निर्माण के मुख्य कारण हैं।
वासना नाश का उपाय:
  • वासना और विकारों का समूल नाश ईश्वरीय आंतरिक चेतना, भक्ति, प्रार्थना, जप-तप, ध्यान और साधना के माध्यम से संभव है।
  • यह आध्यात्मिक क्रियाएँ वासनाओं को उभारकर उन्हें समाप्त करने का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
भक्ति-शक्ति का महत्व:
  • भक्ति और शक्ति के सम्मुख वासना संस्कार प्रस्तुत होने पर उनका शीघ्र क्षय होता है।
  • ईश्वर के प्रति समर्पण और अभ्यास से यह प्रक्रिया और अधिक तेज हो जाती है।
समर्पण और अभ्यास का सम्मिश्रण:
  • भक्ति और अभ्यास (जप-तप, ध्यान, प्रार्थना) के सामंजस्य से वासनाओं के क्षय की गति तीव्र होती है।
  • इससे आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति तेजी से होती है।
निष्कर्ष:
  • वासना और विकारों का नाश भक्ति, साधना, और ईश्वर के प्रति समर्पण के माध्यम से ही संभव है।
  • इन उपायों को अपनाने से मनुष्य आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होता है।
Shopping Cart
Scroll to Top
Enable Notifications OK No thanks