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भौतिकवादी जीवनशैली और आध्यात्मिक सभाओं से विमुखता
विषय भोगो में लगा हुआ मनुष्य अपने जीवन का बहुमूल्य समय एवं श्रम , विषय-भोगो , विकार , काम-वासना , आराम में ही लगाते हैं , इन भोगो को ही सुख मानते हैं। इसके विपरीत सत्संग चर्चा में उनकी कोई रुचि कदापि नहीं रहती। वै सदैव बुरे कर्म , पाप में ही निरंतर सलग्न रहते हैं। उनके वार्तालाप , कर्म आदि सभी कुछ भोगो से युक्त मनुवयों की संगति में ही होता हैं , जो मन , वचन, कर्म से दृश्य संसार के भोगो को भोगने में ही तैयार और लीन होते हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु
- भोगों में अटकता मनुष्य – जो मनुष्य विषय-भोग, विकार, और आराम में अपना समय और श्रम लगाते हैं, वे अपनी असली सुख की खोज नहीं करते।
- सत्संग में रुचि की कमी – ऐसे लोग सत्संग और धार्मिक चर्चाओं में रुचि नहीं दिखाते, उनका ध्यान केवल भोगों पर रहता है।
- बुरे कर्मों में लिप्तता – यह लोग बुरे कर्मों और पापों में निरंतर सलग्न रहते हैं, उनका जीवन भोग और इच्छाओं के इर्द-गिर्द घूमता है।
- मन और कर्म का भोग से संबंध – ऐसे व्यक्तियों के वार्तालाप और कर्म भोगों और इच्छाओं से जुड़े होते हैं, और वे इससे बाहर नहीं निकल पाते।
- संगति का प्रभाव – ये लोग भोगवादी मानसिकता वाले व्यक्तियों की संगति में रहते हैं, जिससे उनकी सोच और कर्म भी भोगों की ओर बढ़ते हैं।