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बालिकाओं की गुमशुदगी और इसके गंभीर कारण
एकल परिवार की ६८.४ फीसदी बालिकाएं हुई गुम……. ! इंदौर में पांच वर्ष में गम हुई बालिकाओं की उम्र १३ से १७ वर्ष आयु के बीच हैं| यह बालिकाएँ एक परिवारों की हैं जिनमे माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं। संभ्रांत परिवारों के मुकाबले मजदूर के परिवारों की बालिकाओं की संख्या ज्यादा हैं। बच्चियाँ १८ से २३ वर्ष के लड़को के साथ भाग कर गई। बच्चियाँ इंस्टाग्राम , व्हाट्सप फेसबुक के माध्यम से लड़कों के संपर्क में आती हैं। लड़कियों ने घरेलू हिंसा , कम उम्र में शादी का दबाव और माता-पिता की डाँट के कारण भी घर छोड़ा हैं। इस गंभीर विषय पर हमें सार्वजनिक से चर्चा कर , समाधान की ओर अग्रसर होना चाहिए अन्यथा बच्चियाँ अरब देशों में किसी न किसी बहाने से भेज दी जावेगी।
महत्वपूर्ण बिंदु
- गुमशुदगी की बढ़ती संख्या – इंदौर में 68.4% बालिकाएं गुम हो चुकी हैं, जिनकी आयु 13 से 17 वर्ष के बीच है।
- एकल परिवारों में समस्या – बालिकाओं का अधिकांश प्रतिशत ऐसे परिवारों से है, जहां माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं।
- मजदूर परिवारों में अधिक मामले – मजदूर परिवारों की तुलना में संभ्रांत परिवारों में गुमशुदगी के मामले कम हैं।
- सोशल मीडिया का प्रभाव – इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, और फेसबुक के माध्यम से लड़कों के संपर्क में आने वाली बालिकाओं की संख्या बढ़ रही है।
- घरेलू हिंसा और शादी का दबाव – घरेलू हिंसा, कम उम्र में शादी का दबाव और माता-पिता की डांट के कारण बच्चियाँ घर छोड़ रही हैं।
- गंभीर परिणाम – यदि इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा नहीं की गई तो बच्चियाँ अरब देशों में भेजी जा सकती हैं।
- सार्वजनिक चर्चा की आवश्यकता – इस विषय पर सार्वजनिक चर्चा जरूरी है ताकि समाधान की दिशा में कदम उठाए जा सकें।