यह भारतीय अध्यात्म का शाश्वत सत्य सिद्धांत है कि चेतना पत्थर में सोती है, वनस्पति में जागती है, पशु में चलती है, और मनुष्य में चिंतन, विचार, परमार्थ, परोपकार एवं मानव कल्याणार्थ कार्य करती है। इसी तथ्यात्मक सत्य के कारण मनुष्य परम पिता परमेश्वर का सृष्टि में सच्चा साथी है। अतः सत्य का शाश्वत चिंतन और विचार मनुष्य की पहचान है। इस चिंतन और विचार का संबंध मनन से है, जो मन और चित्त की सूक्ष्म शक्ति के रूप में निहित है।
मन और चित्त प्रत्येक मनुष्य के प्रारब्धानुसार उत्थान और पतन का कारण बनते हैं। चित्त में संकलित या संचित संस्कारों के कारण अच्छे-बुरे विचार, आशा-निराशा की भावना, सात्विकता और तामसिकता के विचार – सब प्रारब्धानुसार मन और चित्त द्वारा नियंत्रित होते हैं।
मनुष्य अच्छे-बुरे कार्य अपने मन और चित्त की शक्ति के अनुसार ही प्रत्येक क्षण करता है। मन और चित्त की सूक्ष्म शक्ति अत्यंत प्रबल होती है। मस्तिष्क के माध्यम से मन और चित्त शरीर की इंद्रियों का संचालन करते हैं। जब शरीर थक जाता है, तो मन उसमें बल या शक्ति प्रदान कर उसे पुनः सक्रिय कर देता है।
मनुष्य का दिव्य जीवन मूलतः मन, चित्त और मस्तिष्क का ही जीवन है। यदि मनुष्य का मन हार मान लेता है, तो जीत पाना कदापि संभव नहीं होता। जय और पराजय केवल मन और चित्त की भावनाएं हैं। जब हम किसी कार्य के आरंभ में ही हार मान लेते हैं, तो जीतना कठिन हो जाता है। अपनी आंतरिक एवं बाह्य क्षमताओं में विश्वास की कमी ही असफलता की ओर धकेलती है। इसलिए मन और चित्त को सुदृढ़ बनाकर सफलता प्राप्ति के प्रति आश्वस्त रखना आवश्यक है।
मनोबल वस्तुतः अपनी आंतरिक शक्तियों की सच्ची पहचान है। कठिन से कठिन परीक्षा और प्रतिकूल परिस्थितियों में जो मनुष्य अपने मन और चित्त से विचलित नहीं होता, वही सफल होकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करा पाता है।
अतः मन और चित्त अनंत, अदम्य शक्ति के स्रोत हैं। इनकी शक्ति अत्यंत व्यापक और अक्षय है। इस दिव्य सूक्ष्म शक्ति का पूर्ण सकारात्मक उपयोग कर मनुष्य महा-मानव बन सकता है।

मुख्य बिंदु
- चेतना का विकास – चेतना पत्थर में सोती है, वनस्पति में जागती है, पशु में चलती है और मनुष्य में विचार व परोपकार के रूप में कार्य करती है।
- मनुष्य की विशेषता – मनुष्य अपने चिंतन, विचार, परमार्थ और परोपकार के कारण परमात्मा का सच्चा साथी है।
- मन और चित्त की भूमिका – मन और चित्त मनुष्य के उत्थान और पतन के मुख्य कारण होते हैं।
- संस्कारों का प्रभाव – चित्त में संचित संस्कार अच्छे-बुरे विचार, आशा-निराशा, सात्विकता और तामसिकता को नियंत्रित करते हैं।
- शरीर, मन और चित्त का संबंध – शरीर का संचालन मन और चित्त की शक्ति से होता है, जो उसे थकान के बाद पुनः सक्रिय करते हैं।
- सफलता और मानसिकता – यदि मनुष्य का मन हार मान लेता है, तो जीत असंभव हो जाती है। जय और पराजय केवल मानसिक भावनाएं हैं।
- आत्मविश्वास और सफलता – आंतरिक एवं बाह्य क्षमताओं पर विश्वास की कमी असफलता का कारण बनती है, इसलिए मन को सुदृढ़ बनाना आवश्यक है।
- मनोबल का महत्व – कठिन परिस्थितियों में जो मनुष्य अपने मन और चित्त को स्थिर रखता है, वही सफलता प्राप्त करता है।
- मन और चित्त की शक्ति – मन और चित्त अनंत और अदम्य शक्ति के स्रोत हैं, जिनका सकारात्मक उपयोग कर मनुष्य महा-मानव बन सकता है।
निष्कर्ष:
- कंप्यूटर कभी भी मानव मस्तिष्क की दिव्य क्षमताओं की बराबरी नहीं कर सकता।
- मानव मस्तिष्क एक चमत्कारी चेतन यंत्र है, जो ऊर्जा और चेतना के संयुक्त प्रभाव से कार्य करता है।