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अध्यात्म बड़ा आसान हैं किन्तु हृदय , मन चित्त तथा संसार ने मिलकर इसे जटिल बना दिया हैं केवल हृदय ,मन और चित्त को संसार से मोड़ना ही तो अध्यात्म हैं।
बुल्लेशाह ने यही बात अपने गुरूजी से पूछी तो उन्होंने कहा कि, “भगवान् को प्राप्त करने में क्या कठिनाई हैं ? हृदय , मन को संसार से हटाना तथा भगवान में लगाना ही तो हैं”, पर मनुष्य इतना अशक्त हो चूका हैं कि उसके लिए यह सरल कार्य कर पाना भी कठिन हो रहा हैं। इससे अधिक दयनीय स्थिति मनुष्य की और क्या हो सकती हैं।

कुछ मुख्य बिंदु
यहाँ अध्यात्म की सरलता और मनुष्य की कठिनाई पर कुछ संक्षिप्त बिंदु दिए गए हैं:
- अध्यात्म का सरल उद्देश्य: अध्यात्म का सार है हृदय, मन, और चित्त को संसार से हटाकर ईश्वर में लगाना।
- संसार में उलझन: हृदय, मन और चित्त संसार में इतना उलझ चुके हैं कि अध्यात्म जटिल प्रतीत होने लगा है।
- बुल्लेशाह का प्रश्न: बुल्लेशाह ने अपने गुरु से पूछा कि भगवान को प्राप्त करना कठिन क्यों है?
- गुरु का उत्तर: गुरु ने समझाया कि बस मन को संसार से हटाकर भगवान में लगाना है, पर यह सरलता से हो नहीं रहा।
- मानव की अशक्ति: मनुष्य अपनी इच्छाओं और विकारों के कारण इतना कमजोर हो चुका है कि यह आसान कार्य भी कठिन लगने लगा है।
- दयनीय स्थिति: यह मनुष्य की दयनीय स्थिति है कि साधारण अध्यात्मिक कार्य भी कठिन प्रतीत हो रहा है।
- ईश्वर प्राप्ति की राह: ईश्वर को पाने का मार्ग तो सरल है, पर मन को साधना सबसे बड़ी चुनौती बन गई है।
- साधना का वास्तविक अर्थ: अध्यात्म में साधना का अर्थ मन को संसार से हटाकर ईश्वर में स्थिर करना है।
- आध्यात्मिक प्रयास में बाधाएँ: मन की चंचलता और संसार की मोह माया आध्यात्मिक पथ को कठिन बना देती हैं।
- आध्यात्मिक संघर्ष: यह मनुष्य का आंतरिक संघर्ष है, जो उसे अध्यात्म की सरलता में भी कठिनाई महसूस करवाता है।