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कर्म लेख और परमात्मा का नाम
परमात्मा के नाम तथा स्थान भी असंख्य हैं। इंद्रलोक आदि अगत्स्य स्थान भी अनन्त हैं। प्रारब्धानुसार , कर्म लेखानुसार ही परमात्मा का नाम , प्रार्थना , भक्ति , जप – तप , स्तुति संभव हैं। कर्म लेख से ही ज्ञान प्राप्त होता हैं तथा मनुष्य परमात्मा का गुण गान कर पाता हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु
- परमात्मा के अनंत रूप – परमात्मा के असंख्य नाम और स्थान होते हैं, जो अनंत हैं।
- प्रारब्ध और कर्म का प्रभाव – परमात्मा के नाम, भक्ति और प्रार्थना का अनुभव हमारे प्रारब्ध और कर्म लेख के अनुसार होता है।
- ज्ञान का स्रोत – कर्म लेख के द्वारा ही हमें सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है।
- गुणगान की प्रक्रिया – जब मनुष्य अपने कर्म से सही मार्ग पर चलता है, तब वह परमात्मा का गुणगान कर पाता है।
- भक्ति का मार्ग – भक्ति, जप, तप और स्तुति केवल कर्म और प्रारब्धानुसार संभव हैं।