The Deeds, Destiny And The Name of the Divine

कर्म लेख और परमात्मा का नाम

परमात्मा के नाम तथा स्थान भी असंख्य हैं।  इंद्रलोक आदि अगत्स्य स्थान भी अनन्त हैं।  प्रारब्धानुसार , कर्म लेखानुसार ही परमात्मा का नाम , प्रार्थना , भक्ति , जप – तप , स्तुति संभव हैं।   कर्म लेख से ही ज्ञान प्राप्त होता हैं तथा मनुष्य परमात्मा का गुण गान कर पाता हैं।  

महत्वपूर्ण बिंदु

  1. परमात्मा के अनंत रूप – परमात्मा के असंख्य नाम और स्थान होते हैं, जो अनंत हैं।
  2. प्रारब्ध और कर्म का प्रभाव – परमात्मा के नाम, भक्ति और प्रार्थना का अनुभव हमारे प्रारब्ध और कर्म लेख के अनुसार होता है।
  3. ज्ञान का स्रोत – कर्म लेख के द्वारा ही हमें सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है।
  4. गुणगान की प्रक्रिया – जब मनुष्य अपने कर्म से सही मार्ग पर चलता है, तब वह परमात्मा का गुणगान कर पाता है।
  5. भक्ति का मार्ग – भक्ति, जप, तप और स्तुति केवल कर्म और प्रारब्धानुसार संभव हैं।
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