मनुष्य के कर्मों का सुधार तो तुरंत ही हो सकता है, परंतु कर्मों का फल तुरंत नहीं मिलता। जितनी देर से कर्मों का फल मिलता है, उतनी ही देर से उसके सुधार की बात भी समझ में आती है। जहरीले साँप के काटते ही आदमी की तुरंत मृत्यु हो जाती है। यह ऐसा कर्म है, जिसका नतीजा तुरंत मिल जाता है। इसलिए कोई मनुष्य भूल से भी साँप के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहता। जो लोग ऐसा करते भी हैं, वे ज़हर की दवा साथ रखकर करते हैं।
सृष्टि में जितने भी ऐसे कर्म हैं, जिनके परिणाम तुरंत आते हैं, उन कर्मों से लोग अधिक सावधान रहते हैं और ऐसे कर्म करने से डरते हैं। सृष्टि का प्रत्येक मनुष्य कर्म करने के लिए स्वतंत्र है। वह सत्य-असत्य, पाप-पुण्य, न्याय-अन्याय आदि का विचार किए बिना मनमाने कर्म कर सकता है, उन्माद में आकर मारकाट और दंगे-फसाद कर सकता है, फिर यह सोच सकता है कि “जो होगा देखा जाएगा।”
परंतु जब बुरा नतीजा सामने आता है, तो उस समय उसकी आँखों से रक्त के आँसू बहने लगते हैं। जिसे वह पहले “देखा जाएगा” कहता था, वह अपने ही नरक को न तो देख पाता है और न ही सहन कर पाता है। समाज में अपमान होने लगता है, तो जीते-जी शरीर जलाने की इच्छा होने लगती है।
अपने बुरे कर्मों के नतीजे को देखने की इच्छा किसे होगी?
किसी संत ने कहा है:
जो औरों को सताते हैं, स्वयं भी सताए जाएंगे,
जो औरों की रक्षा करते हैं, स्वयं भी बचाए जाएंगे।
जो अपने बल से ज़ुल्म कर, ग़रीबों को रुलाते हैं,
बनकर निर्बल और असहाय, स्वयं भी रुलाए जाएंगे।
जो निर्दय होकर छुरी चलाते, मासूम जीवों की गर्दन पर,
न्याय के दिन उनके भी, गले पर वार किए जाएंगे।
जो यज्ञ में बलि चढ़ाकर, पशुओं की आहुति देते हैं,
वही पाप-अग्नि में स्वयं, भस्म कर दिए जाएंगे।

महत्वपूर्ण बिंदु
- कर्मों का सुधार और फल – मनुष्य अपने कर्मों को तुरंत सुधार सकता है, लेकिन उनके फल मिलने में समय लगता है।
- जल्द परिणाम वाले कर्म – जिन कर्मों का परिणाम तुरंत मिलता है, उनसे लोग अधिक सावधान रहते हैं, जैसे साँप के काटने से मृत्यु।
- स्वतंत्रता और परिणाम – मनुष्य अपने कर्म करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन उनके परिणाम से बच नहीं सकता।
- बुरे कर्मों का दुष्परिणाम – अनैतिक कर्मों के परिणामस्वरूप व्यक्ति को पछताना पड़ता है, और समाज में अपमानित होना पड़ता है।
- उन्माद और पछतावा – क्रोध या उन्माद में किए गए अपराधों का परिणाम आने पर व्यक्ति को गहरा कष्ट होता है।
- नैतिकता और न्याय – जो दूसरों को सताते हैं या निर्दोषों पर अत्याचार करते हैं, उन्हें भी जीवन में अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है।
- पशु हिंसा और न्याय – निर्दोष प्राणियों पर हिंसा करने वाले भी एक दिन न्याय के चक्र में स्वयं पीड़ित होते हैं।
निष्कर्ष:
- कंप्यूटर कभी भी मानव मस्तिष्क की दिव्य क्षमताओं की बराबरी नहीं कर सकता।
- मानव मस्तिष्क एक चमत्कारी चेतन यंत्र है, जो ऊर्जा और चेतना के संयुक्त प्रभाव से कार्य करता है।