वैज्ञानिकों ने एक जड़ यंत्र कंप्यूटर का आविष्कार कर मानव मस्तिष्क के कार्यों को काफी हद तक अपने हक में कर लिया है, लेकिन फिर भी मस्तिष्क की जो चैतन्य एवं प्राकृतिक सूक्ष्म दिव्य क्षमता है, वह न केवल आज बल्कि किसी भी युग में कंप्यूटर में नहीं आ सकती। जैसे आज के वैज्ञानिक रक्त के निर्माण में सर्वथा असफल हैं।
दिव्य ईश्वरीय निर्मित मस्तिष्क में सोचने, अच्छा-बुरा परखने, अपनी भूलों को समझने और सुधारने, भावनाओं का अनुभव करने, भ्रम-विभ्रम, संकल्प-विकल्प, कोमलता, दयालुता, सद्भावना, सुख-दुःख के भाव, आशा-निराशा, समन्वय, चालाकी, छल-कपट आदि जैसी जो चैतन्य सूक्ष्म क्षमताएँ हैं, वे जड़ कंप्यूटर में किसी भी स्थिति में उत्पन्न नहीं हो सकतीं। यदि दिव्य मानव मस्तिष्क भी चेतन सत्ता से रहित, स्वतः संचालित जड़ यंत्र की तरह कार्य करता, तो उसमें कंप्यूटर जैसे ही लक्षण होते, किंतु ऐसा कदापि नहीं है और न ही हो सकता है।
मनुष्य का मस्तिष्क अपने जीवन, व्यापार या दैनिक कार्यों को स्वयं नहीं करता, बल्कि किसी प्रेरणा से प्रेरित होकर करता है। उस प्रेरक सत्ता के बिना मस्तिष्क के कार्यों की व्याख्या पूरी नहीं हो सकती। विज्ञान-जगत और संसार में भी इसका तथ्यात्मक प्रमाण उपलब्ध है।
शरीर में जो चैतन्यता होती है, वह ईश्वरीय चैतन्य दिव्य-सूक्ष्म ऊर्जा है। यही ऊर्जा शरीर की अत्यंत सूक्ष्म दिव्य शक्ति है, जो मन, चित्त, मस्तिष्क और शरीर को क्रियाशील बनाती है। मन और मस्तिष्क एक नहीं हैं, बल्कि एक साथ मिलकर कार्य करते हैं।
मस्तिष्क एक ओर शरीर से ऊर्जा (शक्ति) प्राप्त करता है और दूसरी ओर चेतन शक्ति (मन एवं चित्त) के साथ मिलकर अपना संपूर्ण कार्य करता है। दोनों एक-दूसरे के बिना अपना-अपना कार्य संपादित नहीं कर सकते। ऊर्जा (शक्ति) और चेतन शक्ति को समझने में प्रायः वैज्ञानिकों को भ्रम हो जाता है। कभी चेतन शक्ति को ऊर्जा मान लिया जाता है और कभी ऊर्जा को चेतन शक्ति। इसका कारण यह है कि शरीर को जीवंत और क्रियाशील बनाए रखने में दोनों शक्तियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऊर्जा के बिना चेतन शक्ति अपनी चेतन सत्ता में विलीन हो जाती है, और चेतन शक्ति के बिना ऊर्जा केवल पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु का गुण-धर्म मात्र बनकर रह जाती है।
जब शरीर में जड़ ऊर्जा की कमी होने लगती है, तो चलने-फिरने, देखने-बोलने, सोचने-विचारने आदि की क्षमता घटने लगती है, और शरीर की ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता मात्र चेतन सत्ता बनकर रह जाती है। यदि शरीर से चेतन सत्ता का अभाव हो जाए, तो केवल शरीर की ऊर्जा उसे जीवित बनाए रखने में सक्षम नहीं हो सकती, बल्कि चेतना के लुप्त होते ही जड़ ऊर्जा अपने चार मूल तत्वों के गुण-धर्म में विभक्त होकर बिखर जाती है।
मानव शरीर ही ऐसा दिव्य क्षेत्र है जहाँ जड़ और चेतन का संयुक्त चमत्कार प्रकट होता है। यही कारण है कि चेतन में जड़ और जड़ में चेतन का भ्रम प्रायः आधुनिक दार्शनिकों और वैज्ञानिकों को होता रहा है।
यही मानव मस्तिष्क एवं कंप्यूटर की कार्यप्रणाली का मुख्य अंतर है।
मनुष्य का मस्तिष्क आधुनिक कंप्यूटर से भी अधिक अनोखा और दिव्य यंत्र है। वैज्ञानिक अब तक इसकी कार्यप्रणाली का मात्र 4% ही खोज पाए हैं। इसमें जीवनी शक्ति, बौद्धिक ज्ञान, और सूक्ष्म शक्ति संचित होती है, जो मनुष्य के पूर्व जन्मों के प्रारब्ध से प्रभावित होती है और चित्त में संस्कारों के रूप में सुरक्षित रहती है। इसमें जिस प्रकार के संस्कार और विचार डाले जाते हैं, मस्तिष्क उसी प्रकार स्वतः कार्य करता है।

महत्वपूर्ण बिंदु
- कंप्यूटर और मानव मस्तिष्क का अंतर
- वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर का आविष्कार कर मानव मस्तिष्क के कई कार्यों को दोहराने की कोशिश की है, लेकिन यह पूरी तरह सफल नहीं हो सकता।
- कंप्यूटर में तर्क और गणना करने की क्षमता होती है, लेकिन भावनाएं, अनुभूति और स्वतंत्र सोच की शक्ति नहीं होती।
- मानव मस्तिष्क की दिव्य चैतन्यता
- मस्तिष्क में सोचने, अच्छा-बुरा परखने, भावनाओं को महसूस करने, संकल्प-विकल्प करने और दया-सद्भावना जैसे गुण होते हैं।
- कंप्यूटर में इस तरह की चेतन एवं प्राकृतिक सूक्ष्म दिव्यता नहीं हो सकती।
- प्रेरणा और मस्तिष्क की कार्यप्रणाली
- मस्तिष्क अपने आप कार्य नहीं करता, बल्कि किसी प्रेरणा या चेतना से प्रेरित होकर निर्णय लेता है।
- विज्ञान भी इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि बिना प्रेरणा कोई कार्य संभव नहीं।
- ऊर्जा और चेतन शक्ति का संबंध
- शरीर की चैतन्यता एक दिव्य ईश्वरीय ऊर्जा है, जो मन, चित्त, मस्तिष्क और शरीर को क्रियाशील बनाती है।
- मस्तिष्क शरीर से ऊर्जा प्राप्त करता है और चेतना के साथ मिलकर कार्य करता है।
- वैज्ञानिकों का भ्रम
- कई वैज्ञानिक चेतना को ऊर्जा समझने की भूल कर बैठते हैं, जबकि चेतन और ऊर्जा दो अलग-अलग तत्व हैं।
- ऊर्जा के बिना चेतना विलीन हो जाती है, और चेतना के बिना ऊर्जा सिर्फ एक भौतिक तत्व बनकर रह जाती है।
- मानव शरीर में जड़ और चेतन का संतुलन
- शरीर में यदि जड़ ऊर्जा की कमी हो जाए तो शारीरिक और मानसिक क्रियाएं प्रभावित होने लगती हैं।
- चेतना के बिना शरीर निष्क्रिय हो जाता है और ऊर्जा के बिना चेतना कार्य नहीं कर सकती।
- मानव मस्तिष्क की अद्भुत क्षमता
- वैज्ञानिक आज तक मानव मस्तिष्क की केवल 4% कार्यक्षमता को समझ पाए हैं।
- मस्तिष्क में पूर्व जन्मों के संस्कार और अनुभव सुरक्षित रहते हैं, जो विचार और व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
निष्कर्ष:
- कंप्यूटर कभी भी मानव मस्तिष्क की दिव्य क्षमताओं की बराबरी नहीं कर सकता।
- मानव मस्तिष्क एक चमत्कारी चेतन यंत्र है, जो ऊर्जा और चेतना के संयुक्त प्रभाव से कार्य करता है।