अपने कर्म एवं कर्तव्य का पालन करते जाएँ , जीवन में सुख- शांति स्वत: मिलती जाएगी

छोटे- परिवारों में इसी कारण से जीवन की दौड़ में पीछे रह जाते है , यह विचार करे कि घर में बड़े हैं न , जिम्मेदारियों को सँभालने वाले हमारे कर्तव्य भूल कर जब हमें ठोकर लगती हैं तब हमें समझ में आता हैं ? अतः सिर्फ हमारे चाहने मात्र से सुख-शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती | इसके लिए हमे सुख शांति के बीज प्रत्येक परिवार में मन , चित्त , हृदय बोने होंगे और बोने की शुरुआत स्वयं से प्रारम्भ तत्काल करनी होगी |
खुद को कर बुलंद इतना , खुदा बन्दे से पूछे बता तेरी रजा क्या हैं ?

इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि आपको कुछ अलग अनोखा हटकर करना हैं , ब्लकि ईश्वर , परमपिता परमेश्वर , अल्लाह, गॉड , वाहे-गुरु आदि ने जो भी कार्य एवं कर्तव्य अपने-अपने प्रारब्ध अनुसार प्रदत्त किये हैं उन्ही कर्म , कार्य को पूरी ईमानदारी के साथ करते हुए अपने जीवन- प्रबंध में आगे बढ़ते जाए |

जैसे यदि आप एक माता- पिता हैं तो अपने संयुक्त-परिवार के लिए समर्पित रहे और दृढ़ संकल्पित रहे उसी प्रकार यदि आप एक भाई ,बहन, पति ,पत्नी , भाभी , देवरानी , जेठानी , चाचा-चाची , दादा -दादी , जो भी सम्बन्ध आपको अपने मनुष्य जीवन में सकारात्मक जीने के लिए दयाल प्रभु ने आपको चुना हैं , उसको पूरी ईमानदारी , समर्पित भाव के साथ जिए , जब हम सबके साथ रहकर अपने कर्तव्यों का पालन करते है तो ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर स्वयं हो जाती हैं , क्योंकि हम सद्-कर्मों की ओर लगे हुए है और इसमें हम सुख – शांति से पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त करने में सफल होते हैं और परिवार में पुनः जागरण कर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह प्रवाहित करने में पूर्ण सफल होते जाएंगे |
अतः हमेशा हर संबंध में शुद्धता , सत्यता , नैतिकता , पवित्रता , निःस्वार्थिता रखे तो प्रभु आपके साथ हमेशा खड़े रहेंगे , अगर आप छल कपट ईर्ष्या , अभिमान , स्वार्थ से भरे हुए अपना जीवन व्यापन करते हैं तो आपको चारों तरफ से छल- कपट , राग-द्वेष , ईर्ष्या ही मिलेगी | अतः स्वयं को मन चित्त हृदय से परिवर्तित करें। मन , चित्त ह्रदय में शुद्धता , पवित्रता के बीज बोएं तो इस जीवन को जियेंगे तो ईश्वर आपसे हर कार्य करने से पूर्व आपकी इच्छा (सकारात्मक) जरूर ही पूछेंगे और प्रत्येक कार्य को आपकी इच्छानुसार कर देने का मार्गदर्शन देंगे और आपके , परिवार का भाग्योदय करने में मिल का पत्थर साबित होंगे |

इसके प्रभाव:

  • कर्तव्यनिष्ठा: जब हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, तो हम अपने जीवन को एक दिशा और उद्देश्य देते हैं।
  • नैतिक विकास: जब हम अपने कर्मों के प्रति जिम्मेदार होते हैं, तो यह हमारे नैतिक विकास में सहायक होता है।
  • सुख-शांति की प्राप्ति: जब हम अपने कर्मों में सच्चाई और निष्ठा रखते हैं, तो जीवन में सुख और शांति स्वतः ही मिलती है।

निष्कर्ष:

अपने कर्म और कर्तव्य का पालन करना न केवल हमारे व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि यह हमारे जीवन में सुख और शांति लाने का एक महत्वपूर्ण साधन है। जब हम अपनी जिम्मेदारियों को पूरी लगन से निभाते हैं, तो हमारे जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है, जिससे अंततः सुख-शांति की अनुभूति होती है। इस प्रकार, कर्म और कर्तव्य के पालन से हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

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