कर भला तो हो भला , सबके भले में अपना भला , मिल बाँटकर खाओं और सभी वैकुण्ठ (Abode Of God) में जाओं

आज परिवार , अड़ोस-पड़ोस , समाज , मोहल्ले में आपस में स्वार्थ की ऋणात्मक ऊर्जा यानि कि छल कपट , ईर्ष्या-द्वेष , लोभ , लालच , संपत्ति के लिए कोर्ट बाजी , तलाक , तिगड़म बाजी , आदि का ही बोल बाला बढ़ता ही जा रहा है , आपस में भरोसा , विश्वास , समन्वयवादी दृष्टी-कोण , सद्भावना , उदारता , नि:स्वार्थ प्रेम , संवेदना , नैतिकता , सत्वगुणी मार्ग आदि पूर्ण रूप से टूटता- बिखरता जा रहा है | हम सभी होने पापों का कारण प्राकृतिक रूप से पंच तत्वों को अर्थात समय को दे रहे है, जबकि समस्त दोष हमारे मन , चित्त (mind , mindstuff) हृदय के हैं |वर्तमान में यह देखने में आ रहा है कि अब रिश्तों की मर्यादाएँ तार तार हो चुकी है , अब रिश्तों की पहले जैसी परवाह नहीं की जाती है | जिस परिवार में हम इतना विश्वास , समर्पण समन्वयवादी दृष्टिकोण रखते हैं कि आखिर उसमें आस्था , श्रद्धा , विश्वास का हनन इतना किस कारण से होता जा रहा हैं ? अगर कोई मुसिबत आए तो परिवार के लोग ही सहायता एवं बचाने आते हैं | ऐसे में परिवार के सदस्य ही जान के दुश्मन बन जाएँ ? ऐसी घटनाएँ जानने के बाद तो जैसे भरोसे का आधार भरभराकर टूट जाता है |

पैसा , धन , संपत्ति , झूठे सम्मान की चाहत , दिखावा , किसी दूसरी स्त्री या किसी दूसरे आदमी की तरफ अपने पति या पत्नी को छोड़कर उनकी ओर भागना , माता- पिता का बच्चों के संबंधो पर नियंत्रण न करना आदि ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं , जहाँ आज मनुष्य विवेक , बुद्धि , ज्ञान खो देता है | इसमें ऐसा लगता है कि
हमारी भारतीय समाज में पाश्चर्न परास्त होने की आंधी चल रही है और लोग अब अनैतिक एवं निष्ठुर होते जा रहे हैं | रिश्तों की मर्यादाएँ तार – तार हो रही है | धनबल , स्वार्थ-बल , बाहुबल , आपराधिक बल हावी होता जा रहा हैं , संस्कार , चरित्र , नैतिकता , संवेदना , नि:स्वार्थ प्रेम में लगातार गिरावट आ रही हैं | यह परिवार के लिए चेतावनी हैं | हमें अपने संयुक्त परिवार की संस्था को मन , चित्त हृदय को मजबूत करना होगा |

इसके प्रभाव:

  • समाज में सद्भावना: दूसरों की भलाई में अपनी भलाई छिपी होती है, जिससे समाज में एकता और सद्भावना बढ़ती है।
  • सहयोग और समर्थन: जब हम एक-दूसरे की मदद करते हैं, तो हम खुद को भी मजबूत करते हैं और समस्याओं का सामना मिलकर कर सकते हैं।
  • आत्मसंतोष: दूसरों की भलाई करने से हमें आंतरिक संतोष मिलता है, जो जीवन में खुशियों का संचार करता है।
  • सकारात्मक वातावरण: भले कार्य करने से सकारात्मक वातावरण बनता है, जिससे सभी को प्रेरणा मिलती है।

निष्कर्ष:

“कर भला तो हो भला” का अर्थ है कि जब हम दूसरों की भलाई के लिए कार्य करते हैं, तो हम अपने लिए भी एक बेहतर भविष्य बनाते हैं। यह न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में सहयोग और सद्भावना बढ़ाने के लिए भी आवश्यक है। जब सभी एक-दूसरे के भले की सोचेंगे, तो हम एक खुशहाल और समृद्ध समाज की ओर बढ़ेंगे।

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