मनुष्य जीव
ईश्वर भी सोचता होगा कि यह मैने कैसा जीव (इंसान) बना दिया ?
कल्पना के आधार पर एक दूसरे का गला काटने में लगे हैं। ईश्वर के सम्बन्ध में विवाद निरर्थक हैं। आचार्यों ने कुंडली जाग्रत के उपरान्त जैसा अनुभव हुआ सिद्धांत स्थापित कर दिए। उस आधार पर मत- मतान्तर खड़े होते चले गए तथा उन सम्प्रदायों के अनुयायियों ने एक दूसरे से झगड़ना आरम्भ कर दिया। व्यक्तियों में सत्य का अनुभव कुछ हैं नहीं , अँधेरे में लठ्ठ घुमा रहे हैं , किन्तु विचारात्मक तथा गंभीर भक्त , साधक इस वाद-विवाद में नहीं उलझता। वह जानता है कि दृष्टी तथा होने वाले अनुभव के अन्तर के कारण ही भेद हैं। अन्यथा ईश्वर को कोई भी किसी परिभाषा ,व्याख्या या विश्लेषण में नहीं बांधा जा सकता। जिस प्रकार व्यक्ति , भक्त , साधक होता हैं वैसी ही ईश्वर की कल्पना कर लेता हैं।

कुछ मुख्य बिंदु
यहाँ ईश्वर की रचना पर पर कुछ संक्षिप्त बिंदु दिए गए हैं:
ईश्वर की रचना पर सवाल – ईश्वर भी सोचता होगा कि उसने इंसान जैसी जटिल रचना क्यों बनाई।
विवाद का अनर्थ – ईश्वर के संबंध में विवादों का कोई वास्तविक महत्व नहीं है।
आचार्यों का सिद्धांत – कुंडली जागरण के अनुभवों पर आधारित आचार्यों ने अपने सिद्धांत बनाए हैं।
मत-मतांतर का उभरना – अलग-अलग सिद्धांतों ने विभिन्न सम्प्रदायों और मत-मतांतरों को जन्म दिया है।
असत्य अनुभव का फैलाव – सत्य का वास्तविक अनुभव ना होने के कारण लोग अंधेरे में लठ्ठ घुमा रहे हैं।
सच्चे साधकों की दृष्टि – गंभीर साधक वाद-विवाद में नहीं उलझते, बल्कि सत्य की खोज में रहते हैं।
ईश्वर का असीमित स्वरूप – ईश्वर को किसी परिभाषा, व्याख्या, या विश्लेषण में सीमित नहीं किया जा सकता।