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कर्म और प्रारब्ध: ईश्वर का सिद्धांत और मनुष्य का आचरण
कर्म लेखानुसार ही ईश्वर का प्रारब्ध का सिद्धांत चित्रगुप्त द्वारा सम्भाला जाता हैं। मनुष्य के मस्तिष्क ,चित्त , प्रारब्ध का निर्माण होता हैं तथा उसी के अनुरूप उसका व्यव्हार , आचरण तदानुकूल होता हैं। जो ईश्वर इस लेख को चित्त में संस्कार के माध्यम से संचित करता हैं उसके मस्तिष्क पर कोई दोष अथवा पक्षपात का प्रभाव नहीं क्योंकि जैसे संस्कार होते हैं वैसा ही प्रारब्ध होता हैं। मनुष्य वास्तव में दृश्य- अदृश्य रूप से अपने ही कर्मों को जीवन में भोगता हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु
- कर्म लेखानुसार प्रारब्ध – ईश्वर का प्रारब्ध सिद्धांत चित्रगुप्त द्वारा संभाला जाता है, जो मनुष्य के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं।
- चित्त और संस्कार – मनुष्य का मस्तिष्क, चित्त और प्रारब्ध संस्कारों के अनुसार निर्मित होते हैं, जो उसके आचरण को प्रभावित करते हैं।
- कर्मों का प्रभाव – मनुष्य अपने कर्मों का प्रतिफल जीवन में दृश्य और अदृश्य रूप से भोगता है।
- निर्दोष प्रारब्ध – जब चित्त में संस्कार संचित होते हैं, तब प्रारब्ध में कोई दोष या पक्षपाती प्रभाव नहीं रहता, क्योंकि कर्मों का प्रतिफल शुद्ध रूप से कर्मों के आधार पर होता है।