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कर्म और पाप: शुद्धि का मार्ग
किसी मनुष्य के हाथ -पैर तथा शरीर गंदगी से भर जाए तो शरीर शुद्धि के लिए पानी से धो लिया जाता हैं। यदि कपडा मल-मूत्रदि से अशुद्ध हो जाए तो साबुन से उसे शुद्ध किया जाता सकता हैं , किन्तु पापों के संग से बुद्धि अपवित्र हो जाए तो वह केवल प्रार्थना , भक्ति , जप -तप , साधना , ध्यान , योग के द्वारा क्षीण किया जा सकता हैं। प्रार्थना नाम जाप, मंत्र जाप, से अनेको पापी दिव्य-पुण्यात्मा हो गए हैं। मनुष्य जो भी कर्म करता हैं , उन सबको चित्र गुप्त जी चित्त में अंकित कर संचित करते जाते हैं। इसी के अनुसार प्राणी , आदमी , परमात्मा के आदेश से ही संसार में योनि भोगने के लिए आता और जाता हैं। यह कर्म का सिद्धांत हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु
- शारीरिक शुद्धि – जैसे शरीर को गंदगी से शुद्ध करने के लिए पानी और साबुन का उपयोग किया जाता है, वैसे ही बुद्धि की शुद्धि के लिए प्रार्थना और साधना आवश्यक हैं।
- पाप और पुण्य – पापों से बुद्धि अपवित्र हो जाती है, जिसे केवल भक्ति, जप, तप, ध्यान और योग द्वारा शुद्ध किया जा सकता है।
- चित्रगुप्त का लेखा – चित्रगुप्त जी हर व्यक्ति के कर्मों को चित्त में अंकित करते हैं और उनका लेखा रखते हैं।
- कर्म सिद्धांत – मनुष्य जो कर्म करता है, उसी के अनुसार उसे कर्मफल मिलता है, और परमात्मा के आदेश से वह संसार में जन्म लेता और जाता है।
- भक्ति और साधना – कई पापी व्यक्तियों ने नाम जाप और भक्ति से दिव्य पुण्यात्मा बनने का मार्ग अपनाया है।