सकाम या सकामी करने का उद्देश्य व्यक्ति के सकारात्मक जीवन से नहीं जुड़ा होता, बल्कि तृष्णा से जुड़ा होता है।
एक सकामी व्यक्ति अपने मन और चित्त को खाने-पीने, देखने-सुनने आदि की इच्छाओं में उलझाए रखता है। वह चोरी, छल-कपट और अन्य कुकर्मों के माध्यम से धन जुटाने का प्रयास करता है और उसे संचित करता है। इसके कारण न जाने कितने लोगों को नुकसान होता है, कितने लोग लुट जाते हैं, पीड़ित होते हैं, और छटपटाते हैं। लेकिन इसके बावजूद उस व्यक्ति की इच्छाएँ कभी पूरी नहीं होतीं, और उसकी भोग की तृष्णा निरंतर बनी रहती है।
अपने परिवार में भी सकामी व्यक्ति का मन और चित्त कभी संतुष्ट नहीं होता। इसलिए वह कभी किसी से पूरी तरह संतुष्ट नहीं रहता। यदि कभी संतुष्ट होता भी है, तो किसी कारणवश ही होता है। असंतुष्ट व्यक्ति गर्म तवे पर गिरने वाली पानी की बूंद के समान होता है, जो जलने और खत्म होने तक छटपटाता रहता है। ऐसा व्यक्ति न स्वयं सुख से रहता है और न ही दूसरों को रहने देता है।
गीता में सकारात्मक फल प्राप्ति की आशा से प्रेरित होकर किए गए कर्म को सकाम कर्म कहा गया है। यहाँ सकाम कर्म को केवल सुख की आशा से प्रेरित होकर किए गए कर्म के रूप में बताया गया है।

सकाम कर्म के मानसिक प्रभाव
जब कोई व्यक्ति केवल सुख की प्राप्ति या फल की आशा में कर्म करता है, तो उसके मन और चित्त में लाभ-हानि, सुख-दुख, हर्ष-शोक, जय-पराजय आदि का द्वंद्व उत्पन्न हो जाता है।
- क्या मेरी इच्छा पूरी होगी या नहीं?
- जीत होगी या हार?
- सुख मिलेगा या दुख?
- सामने वाला व्यक्ति मेरी बात मानेगा या नहीं?
इस प्रकार की दुविधाएँ मन और चित्त में लगातार बनी रहती हैं। कार्य प्रारंभ होते ही मन और चित्त में ऐसी भावनाएँ आने लगती हैं और कार्य समाप्त होने तक बनी रहती हैं।
सकामता से उत्पन्न समस्याएँ
- मन की अस्थिरता: सकाम कर्म करने वाला व्यक्ति दुविधा के कारण एकाग्र और स्थिर नहीं हो पाता। उसकी कर्म में संपूर्ण लगन नहीं होती।
- अनेकों इच्छाएँ: सकामी व्यक्ति की इच्छाएँ कभी एक नहीं होतीं, बल्कि अनेक होती हैं। इससे उसके मन और चित्त में दीनता का भाव उत्पन्न हो जाता है, जिससे उसके चेहरे पर मायूसी झलकती है।
- कर्म की अशुद्धि: जब कोई व्यक्ति कर्म करता है, लेकिन उसका मन फल की चिंता में लगा रहता है, तो उसका कर्म शुद्ध नहीं हो पाता। ऐसे कर्म में आत्मा का सौंदर्य नहीं खिल पाता।
- स्वभाव में कटुता एवं स्वार्थ: सकाम कर्म से मनुष्य के स्वभाव में कटुता और स्वार्थ की वृद्धि होती है।
- परिवार और समाज पर नकारात्मक प्रभाव: सकामी व्यक्ति के नकारात्मक प्रभाव से अन्य लोगों में भी वही स्वभाव जाग्रत होता है, जिससे परिवार और समाज का वातावरण दूषित होता है।
निष्कर्ष:
- कंप्यूटर कभी भी मानव मस्तिष्क की दिव्य क्षमताओं की बराबरी नहीं कर सकता।
- मानव मस्तिष्क एक चमत्कारी चेतन यंत्र है, जो ऊर्जा और चेतना के संयुक्त प्रभाव से कार्य करता है।