आजकल विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में अधिकतर शिक्षकों एवं प्रोफेसरों का नैतिक स्तर अत्यंत शोचनीय एवं विचारणीय हो गया है।
पहले के शिक्षकों का वेतन आज की अपेक्षा बहुत कम था, फिर भी वे कर्तव्यनिष्ठ होकर निःस्वार्थ भाव से विद्यार्थियों को विद्या प्रदान करते थे। उस समय भी जीवन यापन सुचारू रूप से चलता था, आवश्यकताएँ पूरी हो जाती थीं, और समाज में उनकी प्रतिष्ठा एक सर्वमान्य सद्गुरु के रूप में होती थी।
धीरे-धीरे भौतिकतावाद के बढ़ते प्रभाव के कारण मानसिकता में परिवर्तन आता गया। नैतिकता की चमक-दमक शिक्षकों को भी आकर्षित करने लगी। जब सरकार में बैठे उच्च पदस्थ व्यक्ति भी आपराधिक प्रवृत्तियों के होने लगे, तो शिक्षा व्यवस्था पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। आज शिक्षा का स्तर गिर रहा है, जबकि उस पर होने वाला खर्च बढ़ता जा रहा है। पहले शिक्षा पर कम खर्च होता था, लेकिन अध्ययन और अध्यापन का स्तर काफी ऊँचा था, क्योंकि सभी को अपने कर्तव्य का बोध था।
आजकल सकामता (लाभ की इच्छा) इतनी अधिक हो गई है कि इसके दुष्प्रभाव से विद्यार्थियों में न तो गुरु के प्रति श्रद्धा शेष रही है, न ही शिक्षा ग्रहण करने की आस्था। यदि कुछ बचा है, तो केवल प्रथम श्रेणी प्राप्त करने की लालसा। दूसरी ओर, शिक्षकों की मानसिकता भी केवल वेतन प्राप्त करने तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि अधिक से अधिक धन संग्रह करने की प्रवृत्ति उनमें घर कर गई है। इसके बावजूद उनकी आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पातीं। इस लोभ और लालच ने न केवल शिक्षकों की प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया है, बल्कि उनके व्यक्तिगत जीवन को भी अस्त-व्यस्त कर दिया है। चाहे धन की आय कितनी भी बढ़ जाए, लेकिन मानसिक संतोष, सुख, और शांति लगातार घटती जा रही है।
अब यह देखना शेष है कि इन मनुष्यों की इच्छाएँ कब पूर्ण होंगी, वे कब संतुष्ट होकर मानसिक संतुलन प्राप्त करेंगे, और अपने दिव्य कर्तव्य के प्रति पुनः जागरूक होंगे।

महत्वपूर्ण बिंदु:
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- शिक्षकों का नैतिक पतन:
- आजकल शिक्षकों एवं प्रोफेसरों का नैतिक स्तर चिंताजनक हो गया है।
- पहले शिक्षक कम वेतन में भी कर्तव्यनिष्ठ और निःस्वार्थ भाव से शिक्षा प्रदान करते थे।
- भौतिकवाद का प्रभाव:
- समय के साथ भौतिकवाद बढ़ने से शिक्षकों की मानसिकता में बदलाव आया।
- नैतिकता की चमक-दमक और धनलिप्सा ने शिक्षकों को भी प्रभावित किया।
- शिक्षा व्यवस्था पर दुष्प्रभाव:
- सरकार में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के बढ़ते प्रभाव से शिक्षा प्रणाली भी प्रभावित हुई।
- शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है, जबकि शिक्षा पर होने वाला खर्च बढ़ता जा रहा है।
- विद्यार्थियों में श्रद्धा की कमी:
- विद्यार्थियों में गुरु के प्रति श्रद्धा और शिक्षा ग्रहण करने की आस्था घट रही है।
- शिक्षा अब ज्ञान अर्जन के बजाय केवल अच्छे अंक पाने तक सीमित रह गई है।
- शिक्षकों की मानसिकता में बदलाव:
- पहले शिक्षक वेतन से संतुष्ट रहते थे, अब अधिक से अधिक धन संग्रह की प्रवृत्ति बढ़ गई है।
- लोभ और लालच के कारण शिक्षकों की सामाजिक प्रतिष्ठा और व्यक्तिगत जीवन प्रभावित हो रहा है।
- मानसिक असंतोष एवं जीवन में अस्थिरता:
- अधिक धन कमाने के बावजूद शिक्षकों में मानसिक शांति, संतोष, और सुख की कमी हो रही है।
- जीवन असंतुलित और अस्त-व्यस्त होता जा रहा है।
- समस्या का समाधान:
- शिक्षकों को अपने मूल कर्तव्य की ओर लौटना होगा।
- नैतिकता, संतोष, और संतुलित मानसिकता को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है।
- शिक्षकों का नैतिक पतन:
निष्कर्ष:
- कंप्यूटर कभी भी मानव मस्तिष्क की दिव्य क्षमताओं की बराबरी नहीं कर सकता।
- मानव मस्तिष्क एक चमत्कारी चेतन यंत्र है, जो ऊर्जा और चेतना के संयुक्त प्रभाव से कार्य करता है।