The Value of Time: The Key to Success and Spiritual Practice

भारतवासियों में समय की पाबंदी का यही हाल है कि समय की कोई कीमत उनके लिए नहीं होती। यदि उन्हें वायुयान भी पकड़ना हो तो वे अंतिम समय पर ही पहुँचते हैं।

यही स्थिति जीवन में भी होती है। युवावस्था में, जब जप-तप, उपासना और साधना का उचित समय होता है, तब कोई इन कार्यों में रुचि नहीं लेता। संसारिक भोगों में रमते हुए वे वृद्धावस्था की प्रतीक्षा करते रहते हैं, और तब तक साधना का अवसर हाथ से निकल जाता है। वृद्धावस्था में इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं, जिससे जप-तप और साधना कठिन हो जाती है।

समय से बड़ा कोई धन नहीं, और समय के सदुपयोग से बड़ी कोई साधना नहीं। समय की गाड़ी चूक जाने से बड़ा कोई दुर्भाग्य नहीं, और समय की गति को पहचान लेना ही सच्ची वीरता है। समय का आदर न करने से बड़ी कोई मूर्खता नहीं, और समय की प्रतीक्षा करते रहने से बड़ी कोई नासमझी नहीं।

समय की गति कभी रुकती नहीं, केवल हमारा ध्यान उसके प्रवाह से हट जाता है, जिससे हमें उसका भान नहीं रहता। जिस प्रकार यदि हम अपना मुँह दूसरी ओर कर लें, तो पीठ के पीछे का दृश्य हमें दिखाई नहीं देगा, फिर भी वह दृश्य मौजूद रहेगा।

उसी प्रकार, संस्कारवान और सत्य के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति का ध्यान अपने लक्ष्य पर इस प्रकार स्थिर हो जाता है कि वह पूरी एकाग्रता से अपने ध्येय से जुड़ा रहता है। इसलिए कहा जाता है कि जो लोग परमार्थ, परोपकार और कल्याण के कार्यों में संलग्न रहते हैं, उनके विकार और वासनाएँ नष्ट हो जाती हैं। जबकि साधारण लोगों के लिए वे पूर्ववत बनी रहती हैं और उनके पापों का बोझ बढ़ाती रहती हैं।

मुख्य बिंदु

  • समय की अवहेलना – भारतवासियों में समय की पाबंदी का अभाव, यहाँ तक कि विमान पकड़ने जैसी महत्वपूर्ण स्थिति में भी लोग अंतिम समय पर पहुँचते हैं।
  • जीवन में समय का दुरुपयोग – युवावस्था में जब जप-तप और साधना का उचित समय होता है, तब लोग इसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं और वृद्धावस्था की प्रतीक्षा में भोग-विलास में लिप्त रहते हैं।
  • साधना का अवसर चूकना – वृद्धावस्था में इंद्रियाँ शिथिल हो जाती हैं, जिससे जप-तप व साधना करना कठिन हो जाता है, और तब तक समय हाथ से निकल चुका होता है।
  • समय का मूल्य –
      • समय से बड़ा कोई धन नहीं।
      • समय के सदुपयोग से बड़ी कोई साधना नहीं।
      • समय चूक जाना सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।
      • समय की गति को पहचानना सबसे बड़ी वीरता है।
      • समय का आदर न करना सबसे बड़ी मूर्खता है।
      • समय की प्रतीक्षा करते रहना सबसे बड़ी नासमझी है।
  • समय की निरंतरता – समय की गति कभी नहीं रुकती, केवल हमारा ध्यान उसके प्रवाह से हट जाता है, जिससे हमें उसका एहसास नहीं होता।
  • एकाग्रता और लक्ष्य – संस्कारवान और सत्य के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति का ध्यान अपने लक्ष्य पर पूरी तरह केंद्रित रहता है, जिससे वह सफलता प्राप्त करता है।
  • परोपकार और आध्यात्मिक उन्नति – जो व्यक्ति परमार्थ, परोपकार और कल्याण के कार्यों में संलग्न रहते हैं, उनके विकार और वासनाएँ समाप्त हो जाती हैं, जबकि साधारण व्यक्ति पापों का बोझ बढ़ाते रहते हैं।

 

निष्कर्ष:

  • कंप्यूटर कभी भी मानव मस्तिष्क की दिव्य क्षमताओं की बराबरी नहीं कर सकता।
  • मानव मस्तिष्क एक चमत्कारी चेतन यंत्र है, जो ऊर्जा और चेतना के संयुक्त प्रभाव से कार्य करता है।
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