Post Views: 567
समाज और रिश्तों की विरोधाभासी स्थिति
वाह , वर्तमान परिवारों एवं समाजों की बिडम्बना ! कमाल हैं , स्वतंत्र रिश्तों में मदमस्त इंसान बंधन ढुंढ रहे हैं…… और संस्कारित बंधे रिश्तो में स्वतंत्रता किसकी ?
महत्वपूर्ण बिंदु
- स्वतंत्रता की तलाश – स्वतंत्र रिश्तों में जी रहे लोग बंधन की तलाश कर रहे हैं।
- संस्कार और स्वतंत्रता – संस्कारित और बंधे रिश्तों में स्वतंत्रता की कमी महसूस होती है।
- समाज का विरोधाभास – वर्तमान परिवारों और समाजों में रिश्तों को लेकर स्पष्ट विरोधाभास देखने को मिलता है।
- स्वतंत्रता का भ्रम – स्वतंत्र रिश्तों में व्यक्ति अधिक स्वतंत्रता का अनुभव करता है, जबकि बंधे रिश्ते में उसे स्वतंत्रता की कमी महसूस होती है।
- रिश्तों का मूल्य – समाज में रिश्तों की वास्तविकता और उनकी अहमियत अब पहले जैसी नहीं रही।