सामान्य मनुष्य का एक तिहाई जीवन निद्रा ,आलस्य में ही व्यतीत हो जाता है | जहाँ एक ओर जागृत अवस्था का सभी व्यवहार ईश्वर सेवा के माध्यम से परमार्थ।, परोपकार एवं कल्याण सेवा की भी अपेक्षा रखता हैं, वही निद्रा अवस्था का लम्बा समय भी सत्वगुणी मानव के लिए पर्याप्त विचारणीय हैं | निद्राकाल में मन, चित्त में कौन सा गुण यानी तमो , रजो या सत्व गुण प्रभावी रहता हैं इस पर समय का महत्त्व आधारित हैं |
यदि निद्रा के पूर्व का समय तमो गुण में व्यतीत होता हैं तो निद्रा में भी तमो गुण ही मन चित्त में चाय रहता हैं , तब मनुष्य गाढ़ी निद्रा में निमग्न बना रहता हैं, यदि उस समय मन , चित्त में रजोगुण का साम्राज्य हो तो निद्रा में अधिकांशतः स्वप्नावस्था बनी रहती हैं |
यदि निद्रा से पूर्व का समय भजन , जप-तप , प्रार्थना , चिंतन अथवा किसी अन्य पवित्र- साधना में लगाया जाए अथवा भगवान , परमात्मा के नाम जप करते करते ही मनुष्य सो जाए तो निद्राकाल में सत्व-गुण का प्रभाव बना रहता हैं | यह हजारों भक्तों का अनुभूत प्रयोग हैं |

मन, चित्त में अधिक से अधिक समय तक सत्व गुण को धारण करें रहना यह निरंतर साधना हैं | यह ठीक हैं कि सत्व-गुण भी तीनो गुणों के अन्तर्गत ही हैं , चित्त में संचित सत्कारों को क्षीण करने के लिए साधक या सत्वगुणी मनुष्य को तीनों गुणों से ऊपर उठना पड़ता हैं , किन्तु फिर भी सत्व-गुण ऐसा गुण हैं जो आत्म-स्थिति में प्रवेश नहीं करता किन्तु मनुष्य को बंधन-मुक्त (प्रारब्ध से मुक्त) कर आत्म स्थिति करवाने में सहायक होता हैं | इस तो निद्रा अवस्था में तमो गुण प्रधान होता हैं किन्तु जप तप , प्रार्थना, ध्यान , भजन से मनुष्य अपने मन , चित्त में सत्व-गुण प्रधान बना देता हैं, तब निद्रा के तमोगुण पर भी सत्व-गुण आच्छादित रहता हैं | ऐसी ही निद्रा को योग निद्रा की संज्ञा दी जा सकती हैं |
सत्वगुणी निद्रा बहुत हलकी होती हैं | इसमें आराम भी बहुत मिलता हैं किन्तु तनिक भी आवाज होने पर एकदम निद्रा त्याग देता हैं | इस निद्रा में जिस की अनुभूति होती हैं | वह भला जड़ निद्रा में कहाँ ?
इसके प्रभाव:
- सकारात्मक सोच: जागरूक व्यक्ति अपने लक्ष्यों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है, जिससे उसे सफलता मिलती है।
- सपने साकार होना : जो लोग अपने सपनों को साकार करने के लिए जागते हैं, वे उन्हें पूरा करने में सक्षम होते हैं।
- समय का सदुपयोग: जागरूकता से समय का सही उपयोग होता है, जिससे व्यक्ति अपने कार्यों में सफल होता है।
निष्कर्ष :
इसीलिए सोने से पूर्व किसी भी इष्ट परमात्मा के नाम की प्रार्थना की जावें | भगवान् के सगुन स्वरुप का सर्वोत्कृष्ट रूप मन, चित्त में ईश्वरीय चेतना के जागृत होने पर उपलब्ध होता है तब ईश्वरीय शक्ति के आवेश में ही यदि निद्रा आ जाएँ तब भी ईश्वरीय शक्ति की क्रिया शीलता की निरंतरता बनी रहती हैं |