मनुष्य में उत्पन्न होने वाले रोग

सामान्यतः मनुष्य में दो प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं , एक अशुभ तथा अनुचित, अप्राकृतिक खान-पान तथा रहन-सहन के कारण दूसरे प्रारब्ध के कारण | अधिकतर रोगों का कारन अनुचित खान – पान ही होता हैं | यदि खान – पान सादा और प्राकृतिक हो तो पैदा होने वाले रोगो. पर स्वभावतः ही काबू और नियंत्रण पाया जा सकता हैं | दूसरे रोग जो प्रारब्ध के वशीभूत होकर उत्त्पन्न होते हैं , उनको रोकने का मनुष्य के पास कोई उपाय नहीं , उनको शांति चित्त एवं प्रसन्नतापूर्वक भोग लेना ही मनुष्य का कर्तव्य हैं |

जिसके मन में शरीर के प्रति आस्तिक का भाव होता हैं , वह किसी भी प्रकार का रोग उत्पन्न होने पर मन को विचलित कर फिर संस्कार संचित कर नए प्रारब्ध का निर्माण करता है |
भोजन बनाते अथवा करते समय स्वाद की ओर ध्यान देना उचित नहीं | भौतिक पदार्थों में सुख की अनुभूति विषयानन्द के अंतर्गत हैं | यह ठीक हैं कि मनुष्य पिछले हजारों वर्षों से भोजन के स्वाद के पीछे ही पड़ा हैं | पाक शास्त्र के सभी विकास स्वाद को ध्यान में रखकर ही किया जाता हैं , चाहे इसमें भोजन के विरोधी अप्राकृतिक रसायन तत्वों का ही सम्मिश्रण क्यों न किया जा रहा हो?

मनुष्य को अपने जीवन चक्र को सकरटकमक रूप से आगे बढ़ाने के लिए निरोग , स्वस्थ एवं स्फूर्ति दायक मन, चित्त।, शरीर का स्वामी होना एक शुभ चिन्ह हैं |

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